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राजा॑ रा॒ष्ट्रानां॒ पेशो॑ न॒दीना॒मनु॑त्तमस्मै क्ष॒त्रं वि॒श्वायु॑ ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rājā rāṣṭrānām peśo nadīnām anuttam asmai kṣatraṁ viśvāyu ||

पद पाठ

राजा॑। रा॒ष्ट्राना॑म्। पेशः॑। न॒दीना॑म्। अनु॑त्तम्। अ॒स्मै॒। क्ष॒त्रम्। वि॒श्वऽआ॑यु ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:34» मन्त्र:11 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा किसके तुल्य क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (राजा) प्रकाशमान (नदीनाम्) नदियों के (पेशः) रूप के समान (राष्ट्रानाम्) राज्यों की रक्षा का विधान करता है (अस्मै) इसके लिये (अनुत्तम्) शत्रुओं से अपीड़ित (विश्वायु) जिससे समस्त आयु होती है वह (क्षत्रम्) धन वा राज्य होता है ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो राजा न्यायकारी विद्वान् होता है, उसके प्रति समुद्र को नदी जैसे, वैसे प्रजा अनुकूल होकर ऐश्वर्य्य को उत्पन्न कराती हैं और इस राजा को पूरी आयु भी होती है ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्स राजा किंवत् किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

यो राजा नदीनां पेश इव राष्ट्रानां रक्षां विधत्तेऽस्माअनुत्तं विश्वायु क्षत्रं भवति ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (राजा) प्रकाशमानः (राष्ट्रानाम्) राज्यानाम्। अत्र वा छन्दःसीति णत्वाभावः। (पेशः) रूपम् (नदीनाम्) (अनुत्तम्) अनुकूलं शत्रुभिरबाधितम् (अस्मै) (क्षत्रम्) धनं राज्यं वा (विश्वायु) विश्वं सम्पूर्णामायु यस्मात्तत् ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो राजा न्यायकारी विद्वान् भवति तम्प्रति समुद्रं नद्य इव प्रजा अनुकूला भूत्वैश्वर्यं जनयन्ति पूर्णमायुश्चास्य भवति ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो राजा न्यायी विद्वान असतो, जशा नद्या समुद्राला मिळतात तशी प्रजा त्याला अनुकूल असून ऐश्वर्य उत्पन्न करविते व राजा दीर्घायुषी होतो. ॥ ११ ॥